दबाव दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….

जी हां!

आज का दिन यानी जब खुशियों को गहरी उम्मीदों में बदल दिया जाता है और ये उम्मीदें…. उफ्फ!इतिहास का सबसे डरावना दिवस शायद अब तो नहीं मगर पहले तो था जब हमारी साल भर की कमाई हमें सौंपी जाती थी, किसी को अधिक की उम्मीदों के साथ, किसी को आलोचनाओं के साथ तो किसी को प्रतिस्पर्द्धा (compitition) के साथ।

आप सही सोच रहे हैं मैं रिजल्ट डे यानी परिणाम दिवस (31 मार्च) की ही बात कर रहा हूं, हालांकि इस बार आज रविवार होने के कारण ये कार्यक्रम कल 30 मार्च को ही हो चुका है। बच्चों के मेहनत का परिणाम अब चाहे वो मेहनत पढ़के की हो, एक दूसरे से देख के की हो या फिर अनुमान लगाने में की हो…..

बहरहाल; मार्क्स किस तरीके से आए वो अलग मुद्दा हो जाएगा अभी तो यह सोचने का विषय है कि यही दिन अब उस बच्चे के कंधे पर उम्मीदों का बोझ रख देगा, अब इस प्रतिष्ठा को आगे बरकरार रखने का बोझ। किसी बच्चे की Lkg में आई 95% को यदि आप इस उम्मीद के साथ बांध ले कि अब तो ये हमेशा ऐसे ही % लाएगा, तो कितने सोचने की बात है! % को फोकस मत करो, उसके व्यवहार, विचार , सीखने पर फोकस करो; % तो बाय प्रोडक्ट इसके साथ आ ही जाएगी। इस बात को अभिभावक, शिक्षक समझने की कोशिश करें।

“परिणामों की खुशी अवश्य मनाएं, मगर परिणामों से काल्पनिक उम्मीदें न बांधे।”

धन्यवाद।

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